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Friday, 6 February 2009

यूपीए सरकार की असफलताएं (भाग-4)/असंतुलित विकास

यूपीए की असफलताएं (भाग-1) बेलगाम महंगाई किसानों की दुर्दशा आर्थिक कुप्रबंध

यूपीए सरकार के शासन में अर्थव्यवस्था में भारी असंतुलन है। देश की लगभग 70 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है, जबकि इकॉनोमिक सर्वे 2006-07 के अनुसार कृषि का सकल घरेलू उत्पाद में मात्र 18.5 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। यानि बहुसंख्यक आबादी का जीडीपी में योगदान महज 18.5 प्रतिशत है। इससे स्पष्ट है कि देश की बहुसंख्यक 70 प्रतिशत की आर्थिक हालत बहुत खराब है।

आज से 37 वर्ष पूर्व कांग्रेस ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था। इन 37 वर्षों में से 24-25 वर्षों तक कांग्रेस के शासन के बावजूद गरीबी आज भी विकराल समस्या के रुप में विद्यमान है। आज फिर उसी नारे के सहारे राजनीति चमकाने का प्रयास हो रहा है। कांग्रेस के लिए 'गरीबी हटाओ' सिर्फ नारा ही है, क्योंकि उसे गरीबों के हित से कोई लेना देना नहीं है। संप्रग सरकार की गलत नीतियों के कारण विकास में असंतुलन के चलते आर्थिक असमानता का फासला निरंतर बढ़ रहा है। अभी भी देश की 28 प्रतिशत से अधिक जनता गरीबी की रेखा के नीचे है।

देश में इस समय 39 करोड़ श्रमशक्ति है। जिसमें 22.5 करोड़ कृषि क्षेत्र में, 5 करोड़ उद्योग एवं 10.5 करोड़ सेवा क्षेत्र में लगी हुई है। इन आंकड़ों से भी स्पष्ट है कि देश की आधी से अधिक श्रम-शक्ति का उत्पादन न्यूनतम है।

हमारे यहां भुखमरी बढ़ी है। आधिकारिक आंकड़े यह बताते है कि गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों की संख्या कागजों में घटी है पर वास्तविकता में बढ़ी है। वहीं इस बात के भी प्रमाण हैं कि पिछले साढ़े चारवर्षों में हमारे देश में भुखमरी बढ़ी है।

कम्युनिस्ट पार्टियां हमेशा आर्थिक नीतियों पर हावी रही चाहे सरकारी उपक्रमों में विनिवेश की बात हो, हवाई अड्डों का आधुनिकीकरण हो, पेंशन फंड अथोरिटी के गठन की बात हो, बैंकिग सेक्टर के पुनर्विन्यास और सरकारी बैंकों के एकीकरण, रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, ईपीएफ दर, डब्ल्यूटीओ से सम्बंधित जो भी बात हो, हमें कैबिनेट के निर्णयों में अजीब नजारा दिखाई पड़ता है। लोगों को यह भी मालूम होना चाहिए कि कांग्रेस पार्टी ने कभी भी आर्थिक सुधारों में विश्वास नहीं किया है। सच तो यह है कि वह हमेशा परमिट और लाईसेंस राज की नीति पर चलती रही है और उसने उद्यमों और संस्थाओं के भ्रष्टाचार को आगे बढ़ाया है। आज वह अपने ही बुने जाल में फंस गई है।

कथनी और करनी में भेद, केन्द्र सरकार द्वारा आर्थिक सुधारों को जारी रखने में अपनी असमर्थता और भारत के लोगों की छिपी शक्ति का लाभ उठाने में असमर्थता के कारण राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया है जिसके कारण भारत के लोगों की छवि खराब हुई है तथा गरीबी के प्रति लड़ाई नहीं लड़ी जा सकी है।

वामपंथियों के गहरे प्रभाव और दखलंदाजी के चलते यूपीए सरकार भेल आदि जैसे सरकारी उद्यमों में विनिवेश के अपने ही निर्णयों को कार्यान्वित नहीं कर पा रही है। इस स्थिति के कारण विदेशी निवेशकों के मन में आशंकाए पैदा हो रही है और देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

खुदरा क्षेत्र पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से बेरोजगारी बढेगी
यूपीए ने खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की शुरूआत करने का निर्णय लिया है, जो एक ऐसा उपाय होगा जिससे छोटे व्यापारी तथा विक्रेता बेरोजगार हो जाएंगे तथा आम व्यापारी का जीवन दुखी बन कर रह जाएगा। प्रारम्भिक अनुमानों के अनुसार इस उपाय से खुदरा व्यापार में लगे 4 करोड़ लोग बेरोजगार हो चुके हैं। इससे यूपीए सरकार के इरादों का पर्दाफाश हो जाता है क्योंकि कहने को तो इसमें बेरोजगारों को रोजगार दिलाने की बात कही गई है, परन्तु पहले ही रोजगार युक्त लोग बेरोजगार हो रहे हैं। इससे स्वरोजगार वाले लोगों की संख्या बढ़कर बेरोजगारों की श्रेणी में शामिल हो जाएंगी। इस योजना से निम्नलिखित विपरीत प्रभाव पड़ेंगे:-
-इससे छोटे-छोटे स्टोर खत्म हो जाएंगे क्योंकि वे सुपर मार्केट द्वारा दी गई सेवाओं, उनके मानकों से मैच नहीं कर पाएंगे।
-स्पष्ट ही असंगठित क्षेत्रों में भी खुदरा बाजारों का स्थान समाप्त हो जाएगा।
-इससे प्रतिस्‍पर्धी मूल्यों की शुरूआत होने लगेगी जिससे बहुत से घरेलू दुकानदार समाप्त हो जाएंगे।
-इससे थाईलैण्ड की तरह ही बेरोजगार के अवसर कम हो जाएंगे क्योंकि असंगठित क्षेत्रों में छोटे खुदरा व्यापारियों का स्थान समाप्त हो जाएगा।
-इससे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की रिटेल चेन की पूर्व दिनांकित प्रक्रिया वैध बन जाएगी।
-इससे विदेशी संस्कृति के मानकीकृत रूप को बढ़ावा मिलेगा।
-इससे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का आयात बढ़ता जाएगा और वे भारत में अपने उत्पादों का ढेर लगा देंगी।
-क्योंकि रिटेल में बहुत मामूली निवेश की जरूरत होती है, इसलिए विदेशी व्यापारी देश से बाहर अपने लाभ अपने देश को भेजते रहेंगे।

बचत और पूंजी बाजार
बचत और अर्थव्यवस्था स्थिर पड़ी हुई है क्‍योंकि दीर्घकालीन बैंक जमा राशियों से भी वास्तविक लाभ का पता नहीं चल पा रहा है। इसका कारण यह है कि सरकार अर्थव्यवस्था की सभी बचतों पर एकाधिकार प्राप्त करती जा रही है। राजकोषीय उत्तरदायित्व में जो समय सीमा ला दी गई हैं उस पर नहीं चला जा रहा है। अर्थव्यवस्था में इस प्रवृत्ति को रोकने की आवश्यकता हैं और राजकोषीय बुध्दिमत्ता दिखाना जरूरी है। इससे ही लोगों को बचत करने का प्रोत्साहन मिलेगा।

यूपीए सरकार दावा करती रहती है कि बाजार स्वस्थ हालत में हैं क्योंकि शेयरों की कीमत बढ़ती जा रही है जबकि तथ्य इसके उलट हैं अब स्टॉक मार्किट पूरी तरह से विदेशी संस्थागत निवेशकों के हाथों में है। ये हर भारतीय के लिए चिंता का विषय है इससे भी बढ़कर चिंता का विषय है की भारतीय रिजर्व बैंक ने इस बात की चेतावनी दी है कि कुछ बेईमान तत्वों द्वारा एफआईआई के माध्‍यमों से जो फायदा उठाया जा रहा है वह खतरनाक है। यह बात तब भी हो रही है जबकि पिछले स्टाक स्कैम पर गठित जेपीसी ने ऐसे तात्कालिक उपाय करने की सिफारिश की थी कि एफआईआई संस्थाओं को अवैधा धान का उपयोग करने से रोका जाए।

गरीबी हटाओ नारा मात्र छलावा
आज से 36 वर्ष पूर्व कांग्रेस ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था। इन 36 वर्षों में से 24-25 वर्षों तक कांग्रेस के शासन के बावजूद गरीबी आज भी विकराल समस्या के रुप में विद्यमान है। आज फिर उसी नारे के सहारे राजनीति चमकाने का प्रयास हो रहा है। कांग्रेस के लिए 'गरीबी हटाओ' सिर्फ नारा ही है, क्योंकि उसे गरीबों के हित से कोई लेना देना नहीं है। संप्रग सरकार की गलत नीतियों के कारण विकास में असंतुलन के चलते आर्थिक असमानता का फासला निरंतर बढ़ रहा है। अभी भी देश की 28 प्रतिशत से अधिक जनता गरीबी की रेखा के नीचे है।

यूपीए की असफलताएं (भाग-1) बेलगाम महंगाई किसानों की दुर्दशा आर्थिक कुप्रबंध

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