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Thursday, 12 February 2009

वामपंथी किले को ध्‍वस्‍त कर आगे बढ रहा है संघ


केवल लफ्फाजी के बूते आप बहुत दिनों तक लोगों को मूर्ख नहीं बना सकते। कम्‍युनिस्‍ट अब तक ऐसा ही करते रहे हैं। यही कारण है कि उन पर से लोगों का विश्‍वास तेजी से उठता जा रहा हैं। ''सर्वहारा की तानाशाही'' के सहारे क्रांति का सपना देखने वाले मार्क्‍सवादियों के आचरण पर गौर करें तो यह स्‍पष्‍ट पता चलता है कि वे अब तक मजदूरों का रक्त चूसते रहे हैं। कम्‍युनिस्‍ट शासित प्रदेशों में गुंडागर्दी ही ट्रेड यूनियन का मुख्य हथियार हैं। इसलिए वहां उद्योग-धंधे ठप्प पड़े हैं और कोई पूंजी निवेश करना नहीं चाहता। इन प्रदेशों में मजदूर अभी भी जिल्‍लत भरी जिंदगी जीने पर विवश हैं लेकिन मजदूर नेता ठाठ की जिन्दगी जीते हैं। ''दुनिया के मजदूरों एक हो'' का नारा बुलंद करने वाले कम्‍युनिस्‍टों के ट्रेडयूनियनवाद ने मजदूरों में कर्तव्यबोध को समाप्त करने की साजिश रची वहीं भारतीय मजदूर संघ ने देशभक्ति को सबसे पहले स्‍थान दिया। कम्‍युनिस्‍टों ने नारा लगाया- 'हमारी मांगे पूरी करो, चाहे जो मजबूरी हो।' वहीं भारतीय मजदूर संघ ने कहा- 'देशहित में करेंगे काम, काम का लेंगे पूरा दाम ।' उल्‍लेखनीय है कि 1962 के चीन युद्ध के समय जब बंगाल के वामपंथी संगठनों ने हड़ताल की वकालत की तब मजदूर संघ से जुड़े श्रमिकों ने अतिरिक्त काम किया।

''सर्वहारा की तानाशाही'' के सहारे क्रांति का सपना देखने वाले मार्क्‍सवादियों के आचरण पर गौर करें तो यह स्‍पष्‍ट पता चलता है कि वे अब तक मजदूरों का रक्त चूसते रहे हैं। कम्‍युनिस्‍ट शासित प्रदेशों में गुंडागर्दी ही ट्रेड यूनियन का मुख्य हथियार हैं। इसलिए वहां उद्योग-धंधे ठप्प पड़े हैं और कोई पूंजी निवेश करना नहीं चाहता। इन प्रदेशों में मजदूर अभी भी जिल्‍लत भरी जिंदगी जीने पर विवश हैं लेकिन मजदूर नेता ठाठ की जिन्दगी जीते हैं। ''दुनिया के मजदूरों एक हो'' का नारा बुलंद करने वाले कम्‍युनिस्‍टों के ट्रेडयूनियनवाद ने मजदूरों में कर्तव्यबोध को समाप्त करने की साजिश रची वहीं भारतीय मजदूर संघ ने देशभक्ति को सबसे पहले स्‍थान दिया। कम्‍युनिस्‍टों ने नारा लगाया- 'हमारी मांगे पूरी करो, चाहे जो मजबूरी हो।' वहीं भारतीय मजदूर संघ ने कहा- 'देशहित में करेंगे काम, काम का लेंगे पूरा दाम ।' उल्‍लेखनीय है कि 1962 के चीन युद्ध के समय जब बंगाल के वामपंथी संगठनों ने हड़ताल की वकालत की तब मजदूर संघ से जुड़े श्रमिकों ने अतिरिक्त काम किया।

कभी देश के हरेक प्रांतों में कम्‍युनिस्‍ट मजदूर संगठनों का दबदबा था और वे प्रथम क्रमांक पर रहते थे। और जब राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ ने मजदूरों के क्षेत्र में काम करने का तय किया तो कम्‍युनिस्‍टों ने इसका मजाक उडाया। लेकिन राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के आनुसंगिक संगठन भारतीय मजदूर संघ ने अपनी राष्‍ट्रवादी विचारधारा और राष्‍ट्रीय निष्‍ठा के दम पर कम्‍युनिस्‍ट मजदूर संगठनों के वर्चस्‍व को ध्‍वस्‍त कर‍ दिया। कम्‍युनिस्‍ट शासित केरल में तो भारतीय मजदूर संघ के सदस्‍यों की संख्‍या वामपंथी मजदूर संगठन सीटू से दुगुनी हैं। कम्‍युनिस्‍टों का ट्रेडयूनियन पर वर्चस्‍व हैं, क्‍योंकि इन प्रदेशों में वे भय और आतंक के बल पर सत्‍ता पर काबिज है। बाकी पूरे देश में भारतीय मजदूर संघ के राष्‍ट्रवाद का पताका लहरा रहा है। 62 लाख 15 हजार 797 सदस्यों के साथ भारतीय मजदूर संघ ने लगातार दूसरी बार देश का सबसे बड़े श्रमिक संगठन होने का गौरव प्राप्त किया है। तमाम झंझाबातों का सामना करते हुए तथा कार्यकर्ताओं द्वारा नि:स्वार्थ भाव से मजदूर, उद्योग व राष्ट्र हित में सच्चे लगन से काम करते रहने के कारण ही बीएमएस को यह शानदार उपलब्धि हासिल हुई है।

62 लाख सदस्यों के साथ बीएमएस नंबर-1 पर बरकरार

62 लाख 15 हजार 797 सदस्यों के साथ भारतीय मजदूर संघ ने लगातार दूसरी बार देश का सबसे बड़े श्रमिक संगठन होने का गौरव प्राप्त किया है। जबकि इंटक, एटक व एचएमएस क्रमश: दूसरे, तीसरे व चौथे स्थान पर है। पिछले सत्यापन में तीसरे स्थान पर रही सीटू खिसकर पांचवें स्थान पर चली गई है। बीएमएस दूसरे स्थान के इंटक से 22 लाख 61 हजार 785 सदस्यों के भारी अंतर से आगे है।

केंद्रीय श्रमायुक्त द्वारा 2002 के सदस्यता सत्यापन को आधार मानते हुए 2008 में जारी अधिसूचना के अनुसार 13 केंद्रीय श्रमिक संगठनों की कुल सदस्य संख्या 2 करोड़ 48 लाख 84 हजार 802 है। इनमें बीएमएस की सदस्य संख्या 62,15, 797, इंटक की 39,54,012, एटक की 34,42,239, एचएमस की 33,38,491, सीटू की 26,78,473, यूटीयूसी की 13,73,268्र टीयूसीसी की 07,32,760, एसईडब्लुए की 06,88,140, एक्टू की 06,39,962, एलपीएफ की 06,11,506, यूटीयूसी 06,06,935, एनएफआईटीयू(धनबाद) की 05,69,599 व एनएफआईटीयू(कोलकात) की 33,620 सदस्य संख्या है। इससे पूर्व 1989 के सदस्यता सत्यापन के आधार पर 1994 में अधिसूचना जारी की गई थी। उस समय भी बीएमएस एक नंबर पर थी तथा दूसरे नंबर पर रही इंटक से 4 लाख 24 हजार 176 सदस्यों के अंतर से आगे थी। उस समय सभी श्रमिक संगठनों की कुल सदस्य संख्या 1 करोड़ 23 लाख 34 हजार 142 थी। 1989 व 2002 के बीच 13 वर्षो के अंतराल में आर्थिक उदारीकरण, श्रमिक यूनियनों के प्रति बाजार के नाकारत्मक रूख के बावजूद केंद्रीय श्रमिक संगठनों की सदस्य संख्या 2 करोड़ 48 लाख से अधिक हो गई है। इस अंतराल में बीएमएस में जहां 30 लाख 99 हजार 233 सदस्यों का इजाफा हुआ वहीं इंटक में 12 लाख 61 हजार 624, एटक में 25 लाख 03 हजार 753, एचएमएस में 18 लाख 57 हजार 528, सीटू में 09 लाख 03 हजार 253 सदस्यों का इजाफा हुआ।

2 comments:

रंजन (Ranjan) said...

दिल को खुश रखने को गालिब ये ख्याल अच्छा है....

Sumit Karn said...

कम्‍युनिस्‍ट शासित प्रदेशों में गुंडागर्दी ही ट्रेड यूनियन का मुख्य हथियार हैं। इसलिए वहां उद्योग-धंधे ठप्प पड़े हैं और कोई पूंजी निवेश करना नहीं चाहता। इन प्रदेशों में मजदूर अभी भी जिल्‍लत भरी जिंदगी जीने पर विवश हैं लेकिन वामपंथी मजदूर नेता ठाठ की जिन्दगी जीते हैं। जबकि भारतीय मजदूर संघ के नेता देशहित को सामने रखकर निष्‍ठापूर्वक काम करते हैं, यही कारण वामपंथी मजदूर संगठन दम तोड रहे हैं।