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Friday 13 February, 2009

यूपीए की असफलताएं (भाग-6)/ गठबंधन नहीं, एक सर्कस

यूपीए गठबंधन के बारे में प्रारंभ में कहा जाता था कि यह एक अप्राकृतिक गठबंधन है। यूपीए गठबंधन का एकमात्र राजनीतिक उद्देश्य था 'भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में नहीं आने देना।' वामपंथी दलों ने इसी आधार पर चार सालों तक नूराकुश्ती के माध्‍यम से जनता को भ्रमित भी किया।

देश की जनता बहुत प्रबुद्ध है, अब वह इन चालों को अच्छी तरह समझ चुकी है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार में न तो कुछ प्रगति दिखाई पड़ रही है और न ही कुछ संयुक्त दिखाई पड़ रहा है। यह विभक्त और प्रगतिहीन गठबंधन का नमूना बन कर रह गया है। यूपीए गठबंधन को जनता का विश्वास तो मिला ही नहीं था, चुनाव के बाद गठबंधन के गुणाभाग से उन्होंने जो कृत्रिम विश्वास पाया भी था उसका भी मान रखने में यह सरकार सफल नहीं रही।

भारतीय जनता पार्टी ने 'गठबंधन का दायित्व' एनडीए की सरकार में जिस तरह निभाया है और वर्तमान में कई राज्यों में निभा रही है, वह भारतीय राजनीति के लिए आदर्श बन चुका है। केंद्र के साथ-साथ राज्य स्तर पर महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ दो दशकों से अधिक, पंजाब में अकाली दल, बिहार में जनता दल (यू) के साथ एक दशक से अधिक और उड़ीसा में बीजू जनता दल के साथ 10 वर्षों से भाजपा का गठबंधन सफलता के साथ चल रहा है। ये सभी गठबंधन भारतीय राजनीति के सबसे स्थायी गठबंधनों में से एक है।

पारस्परिक विश्वास के साथ सामंजस्य बनाते हुए गठबंधन चलाना आसान नहीं होता। भारतीय जनता पार्टी ने 'गठबंधन का दायित्व' एनडीए की सरकार में जिस तरह निभाया है और वर्तमान में कई राज्यों में निभा रही है, वह भारतीय राजनीति के लिए आदर्श बन चुका है। केंद्र के साथ-साथ राज्य स्तर पर महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ दो दशकों से अधिक, पंजाब में अकाली दल, बिहार में जनता दल (यू) के साथ एक दशक से अधिक और उड़ीसा में बीजू जनता दल के साथ 10 वर्षों से भाजपा का गठबंधन सफलता के साथ चल रहा है। ये सभी गठबंधन भारतीय राजनीति के सबसे स्थायी गठबंधनों में से एक है।

यदि यूपीए को संयुक्त मानकर चला जाए तो हमें इस 'संयुक्त' की परिभाषा ही पूरी तरह से बदल देनी होगी। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी जिस ढंग से खुलेआम एक दूसरे के खिलाफ बोलते हैं, ऐसी स्थिति में किसी को भी यह शक हो सकता है कि ये यूपीए के भाग हैं अथवा एक दूसरे के विरोधी है। वैसे भी इस गठबंधन की नींव ही मौकापरस्ती पर आधारित है। हर दल अपने-अपने हितों को साधने में लगा है।

यूपीए के अनेक सहयोगी उससे अलग हो गए हैं। बहुजन समाज पार्टी और वामपंथी दल अब उनसे अलग चुके हैं। तेलंगाना ने समर्थन वापस ले लिया। श्री वाइको की पार्टी ने भी यूपीए का साथ छोड़ दिया। लोकदल ने भी पल्ला झाड़ लिया। अत: यह स्पष्ट है कि इन पौने पांच वर्षों में कांग्रेस ने देश की जनता और अपने सहयोगी दल दोनों का विश्वास खोया है।


कांग्रेसनीत यूपीए को देश की जनता पूरी तरह नकार चुकी है। यूपीए व्यावहारिक रूप से संसद में बहुमत खो चुकी है क्योंकि उसके अनेक सहयोगी उससे अलग हो गए हैं। बहुजन समाज पार्टी और वामपंथी दल अब उनसे अलग चुके हैं। तेलंगाना ने समर्थन वापस ले लिया। श्री वाइको की पार्टी ने भी यूपीए का साथ छोड़ दिया। लोकदल ने भी पल्ला झाड़ लिया। अत: यह स्पष्ट है कि इन पौने पांच वर्षों में कांग्रेस ने देश की जनता और अपने सहयोगी दल दोनों का विश्वास खोया है।

यूपीए गठबंधन राजनीति का विचित्र दर्शन पेश कर रहे हैं इसमें विचारों की और क्रियाओं की एकता की बजाय सिर्फ द्वंद और विरोधाभास है। हर दिन मीडिया में रिपोर्टें आती रहती हैं कि वामपंथियों का कोई न कोई घटक सरकार पर न्यूनतम साझा कार्यक्रम से अलग जाता दिखायी पड़ रहा है। यहां तो विचारों की मत-भिन्नता सहमति से कहीं अलग दिखाई पड़ती है।

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कुछ लोग मनमोहन सरकार को एक गठबंधन की सरकार नहीं कहते है बल्कि इसे सर्कस का नाम देते हैं जिसके बहुत से जोकर हैं बल्कि देखा जाये तो यूपीए सर्कस भी नहीं है क्योंकि सर्कस में भी बहुत से पात्र होते हैं जो कम से कम किसी एक के निर्देशन में तो चलते ही हैं। परन्तु यह बात यूपीए के मामले में सही नहीं उतरती है।

लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है। यूपीए सरकार के खिलाफ लोग एकजुट हो रहे हैं। देश में इस गठबंधन एवं सरकार के विरूध्द वातावरण बन चुका है।

2 comments:

रंजन (Ranjan) said...

सर्कस? वैसे NDA क्या था?

इंडियन said...

Ranjan Ji NDA bhee tha to circus hee par wo UPA se behtar circus tha.