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Tuesday 18 September, 2007

रामसेतु रक्षा-हिन्दू अस्मिता रक्षा

-नरेन्द्र कोहली
रामसेतु एवं सर्वोच्च न्यायालय में सरकार के शपथपत्र पर टिप्पणी करते हुए सुप्रसिध्द साहित्यकार एवं रामकथा के आधुनिक रचयिता श्री नरेन्द्र कोहली ने नाथद्वारा प्रवास से पाञ्चजन्य से बातचीत करते हुए कहा कि पूरे परिदृश्य में देश की जनता को चाहिए कि वह ऐसी जागृति पैदा करे जिसकी आंच सरकार तक पहुंचे। अभी तक वह आंच दिखती नहीं है। लंदन में एक अभिनेत्री दो आंसू टपकाती है तो सारा मीडिया पागल हो जाता है, लेकिन यहां रामसेतु टूट रहा है किन्तु जिस परिमाण में देश को जागना चाहिए वह अभी बाकी है। अब केवल शांति के मार्ग से काम नहीं चलेगा। हमें आक्रामक होकर अपनी बात सामने रखनी होगी। सरकार का रवैया ऐसा ही है जैसे कोई पुलिस किसी हत्यारे को बचाने के लिए कहे कि उसके पास कोई प्रमाण नहीं है। जब वह प्रमाण इकट्ठा ही नहीं करेगी तो प्रस्तुत क्या करेगी? अब कोई पूछे कि ताजमहल में जो कब्र है उसमें मुमताज महल ही दफन है, इसका क्या प्रमाण है? तो संस्कृति मंत्रालय और पुरातत्व विभाग क्या जवाब देंगे? पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का काम है कि वह इतिहास खोजे, लिखे और देश का गौरव बढ़ाए। पर ऐसा लगता है कि उस पर विदेशी विधर्मी पैसा हावी है। यह सरकार के मन में बैठा हिन्दू द्वेष है जो उन्हें प्रेरित कर रहा है। उसे हिन्दुओं से भय नहीं है। इसलिए हिन्दुओं का मन दुखे तो दुखे उसे परवाह नहीं। कल को सरकार कह सकती है कि कैलास पर्वत शिव का धाम है, इसका क्या प्रमाण है? ऐसे तत्व हिन्दू-द्रोही ही नहीं, देश-द्रोही भी हैं। वे हिन्दू करदाताओं के पैसे से वेतन पाते हैं और हिन्दुओं की आस्था पर ही प्रश्न चिन्ह खड़े करते हैं।

यह् पूछे जाने पर, कि क्या कारण है कि बाकी साहित्यकार एवं पत्रकार ऐसे मामलों पर चुप रहते हैं, उन्होंने कहा कि हमारे देश में ऐसा परिवेश बना दिया गया है कि कोई यदि राष्ट्र की बात करे तो उसे पिछड़ा हुआ या गुनहगार जैसा बना दिया जाता है। सबको अपनी व्यक्तिगत छवि की चिंता है। सब साफ-सुथरे दिखना चाहते हैं। हिन्दू की बात करने में ही उन्हें डर लगता है कि उन्हें साम्प्रदायिक-कम्युनल कह दिया जाएगा। मैं तो कहता हूं देश में दो ही वर्ग हैं-एक कम्युनल, दूसरे क्रिमिनल। हम कम्युनल हैं क्योंकि हिन्दू-हित यानी राष्ट्रहित की बात करते हैं। अगर देश में सच्चा सेकुलरिज्म हो तो मैं सबसे पहले उसमें शामिल होऊंगा। मैं हिन्दू द्वेष को सेकुलरिज्म नहीं मान सकता। ऐसे लोग समाज का प्रतिनिधित्व करने के लायक नहीं हैं। इनका हर तरीके से विरोध होना चाहिए-कलम से विरोध करो, आवाज उठाकर विरोध करो और जरूरत पड़े तो हाथ उठाने में भी मत हिचकिचाओ।

2 comments:

हरिराम said...

अच्छा विवेचन है। राम सेतु के वैज्ञानिक एवं तकनीकी पक्ष तथा पर्यावरण सम्बन्धी मसलों पर कुछ जानकारी यहाँ देखें।

राजीव रंजन प्रसाद said...

न सिर्फ अच्ची विवेचना है बल्कि तथाकथित झोला-झाप कलमकारों पर आपने उंगली उठा कर अपनी कलम को धन्य किया है।

*** राजीव रंजन प्रसाद