-डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल
भारत की स्वतंत्रता के उपरान्त से ही जिस प्रकार विभिन्न देशों से लोग यहां आये उनमें से अनेक तो शरणार्थी के रूप में थे और अनेक चोरी छिपे घुसपैठिये थे। इससे भारत में जहां जनसंख्या में असंतुलन उभरा वहीं देश में अनेक प्रकार की समस्याएं खडी हो गईं। गत दस वर्षों में बांग्लादेश से लगभग 2.5 करोड की एक बडी आबादी ने भारत में अवैध रूप से घुसपैठ कर ली है जिससे देश में अनेक सीमावर्ती जिले इन घुसपैठियों के लगभग कब्जे में ही आ गये है। परन्तु सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि देश के तथाकथित गैर साम्प्रदायिक राजनीतिक नेता इन अवैध घुसपैठियों की बांग्लादेश में वापसी के लिए कोई पहल नहीं कर रहे हैं तथा जो राजनेता इनको वापिस भेजने की मांग करते हैं उनको साम्प्रदायिक कह कर गाली दी जाती है ।
अब भारत की एकता व अखण्डता भी खतरे में पडती जा रही है । बढ़ती घुसपैठ व बढती जनसंख्या के असंतुलन से देश की आंतरिक सुरक्षा भी खतरे में पड गई है। देश को बाह्य आक्रमण से बचाने के लिए देश की सम्पूर्ण जनता जाति, बिरादरी, मजहब व पंथ को छोड कर एकजुट हो जाती है लेकिन आंतरिक आक्रमण-घुसपैठ होने से आंतरिक असुरक्षा उत्पन्न हो जाती है जिसको सामान्य जन के साथ-साथ हमारे राजनेता भी गम्भीरता से नहीं लेते है। इससे आतंकवाद को शरण मिल जाती है। बढते आतंकवाद ने अब तक कई लाख लोगों को लील लिया है वहीं अरबों रुपये की राष्ट्र की सम्पत्ति को हानि पहुंची है एवं देशवासी भी एकजुट होकर इस आतंकवाद से लड़ने में स्वयं को तैयार नहीं कर पाते हैं ।
भारत ने स्वतंत्रता के अपने साठ साल के जीवन में पांच प्रमुख युध्द झेले है जिनमें हमारे रणबांकुरों ने दुश्मनों के दांत खट्टे किये है, परन्तु युध्दोपरांत वार्ता की मेज पर दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव व अल्पसंख्यक वोट बैंक की राजनीतिक दुष्प्रवृति व मानसिकता के कारण भारत का जीता हुआ युध्द भी सदैव पराजित होता रहा है। लगभग वैसी ही स्थिति बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ को लेकर हमारे राजनीतिक दलों की हो रही है। विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने तो भारत में रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों की कुल संख्या ही घटा कर 15 से 20 लाख बतायी है जिसे विपक्ष ने लोकसभा में सफेद झूठ बताया है। दिल्ली में ही विभिन्न क्षेत्रों में लगभग पांच लाख से अधिक बांग्लादेशी घुसपैठिए निवास करते हैं। मुम्बई, कोलकाता तथा पश्चिमी बंगाल के विभिन्न हिस्सों में राजनेताओं की कृपा दृष्टि से तीस लाख से अधिक बांग्लादेशी बसे हुए हैं। असम के कई जिलों में इन घुसपैठियों के कारण आबादी में (भारतीय व विदेशी घुसपैठियों के बीच) संतुलन का खतरा पैदा हो गया है। राष्ट्रवादी शक्तियां इन अवैध घुसपैठियों से देश में बढ़ते हुए खतरे को लेकर चिन्तित रहती है। परन्तु पूर्वोत्तर राज्यों के राजनेता एकदम से आंख मूंदे हुए हैं । समूचे भारत में लगभग 2.5 करोड बांग्लादेशी निवास करते हैं जिनके कारण भारत में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक (खाद्यान्न सहित) तानाबाना तहस-नहस हो रहा है। देश की एकता व अखंडता निरन्तर खतरे में पडती जा रही है सो अलग।
यह कई बार साबित हो चुका है कि मुस्लिम आतंकवादी पकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई बांग्लादेश के लोगों व जमीन का उपयोग भारत विरोधी गतिविधियों के लिए कर रहे हैं । पाकिस्तान से प्रशिक्षित आंतकवादी बांग्लादेश के रास्ते भारत में प्रवेश कर जाते हैं । बांग्लादेश से भारत में आ रहे बांग्ला घुसपैठिए महज रोजी रोटी के लिए भारत की सीमाओं का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं। भारत में पकडे गये आतंकवादियों से खुलासा हुआ है कि उन्होंने बांग्लादेश की कई बार यात्रा की है। हमारे राजनेताओं के दब्बूपन और सत्ता के लिए वोट बैंक की राजनीति ने राष्ट्र को एक गम्भीर खतरे की ओर बढा दिया है।
केन्द्र सरकार की ढिलाई के कारण प्रतिदिन 6,000 बांग्लादेशी घुसपैठिए अवैध रूप से भारत की सर-जमीन पर दाखिल हो जाते हैं। भारतीय सुरक्षा बलों के कुछ भ्रष्ट सिपाहियों व अधिकारियों को मात्र हजार पांच सौ रुपये देकर बांग्लादेशियों को भारत की सीमा में चुपचाप दाखिल करवा दिया जाता है। भारत में घुसे इन अवैध घुसपैठियों को फिर भारतीय राजनेताओं का राजनीतिक संरक्षण प्राप्त हो जाता है तथा भारत में रहने के लिए आवश्यक सभी प्रपत्र फर्जी रूप से तैयार करवा दिये जाते हैं। अवैध घुसपैठियों के कारण भारत के मूल नागरिकों के काम धन्धे पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा हैं ।
भारत में बांग्लादेश से हो रही अवैध घुसपैठ रोकने के लिए सरकार को दृढ़ इच्छाशक्ति से प्रारम्भ में दो काम करने चाहिए-अवैध रूप से भारत में रहने वालों को वापस खदेडा जाए तथा बांग्लादेश की पूरी सीमा को कंटीले लोहे के तारों से सील किया जाए वरना तो भारत का एक बडा हिस्सा भारत से पृथक हो जायेगा।
सन् 1800 में अफगानिस्तान व ईरान भारत के ही हिस्से थे किन्तु विदेशी आक्रमणकारियों से उत्पन्न हुए आतंक के कारण ही यह हिस्सा भारत से अलग हो गया। कश्मीर में फैलता आतंकवाद व 1960 से शुरू हुआ माओ आतंक भारत की आंतरिक सुरक्षा को भेदने का निरन्तर प्रयास कर रहा है। 21 वीं शताब्दी में विश्व में दो बडे आतंकवादी हमले हुए है। अमेरिका के पैंटागन और वर्ल्ड सेंटर पर हुआ हमला जिसने अमेरिका जैसी महाशक्ति को हिला कर रख दिया और दूसरा हमला विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र भारत की संसद पर किया गया जिससे पाक प्रायोजिक आतंकवाद बेनकाब हुआ । 1971 में हमारे वीर सैनिकों ने अपना खून बहा कर जिस बांग्लादेश का निर्माण किया वही आज भारत के लिए सबसे बड़ी समस्या बन चुका है।
2.5 करोड से अधिक बांग्लादेशी भारत की संस्कृति, आंतरिक सुरक्षा व रोजगार में सेंध मार रहे हैं वहीं प्रतिदिन 1,50,000 कुंतल खाद्यान्न चट कर जाते है। परन्तु अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण में तल्लीन हमारे राजनेता इस महत्वपूर्ण समस्या को गम्भीरता से नहीं ले रहे है तथा घुसपैठियों से उत्पन्न हुआ रोग अब नासूर बन चुका है जिसका एक बड़ा ऑपरेशन शीघ्र अतिशीघ्र करना आवश्यक हो गया है। जिसमें बांग्लादेश की सीमा पर 100 प्रतिशत तार बंदी शामिल है।(हिन्दुस्थान समाचार)
अब भारत की एकता व अखण्डता भी खतरे में पडती जा रही है । बढ़ती घुसपैठ व बढती जनसंख्या के असंतुलन से देश की आंतरिक सुरक्षा भी खतरे में पड गई है। देश को बाह्य आक्रमण से बचाने के लिए देश की सम्पूर्ण जनता जाति, बिरादरी, मजहब व पंथ को छोड कर एकजुट हो जाती है लेकिन आंतरिक आक्रमण-घुसपैठ होने से आंतरिक असुरक्षा उत्पन्न हो जाती है जिसको सामान्य जन के साथ-साथ हमारे राजनेता भी गम्भीरता से नहीं लेते है। इससे आतंकवाद को शरण मिल जाती है। बढते आतंकवाद ने अब तक कई लाख लोगों को लील लिया है वहीं अरबों रुपये की राष्ट्र की सम्पत्ति को हानि पहुंची है एवं देशवासी भी एकजुट होकर इस आतंकवाद से लड़ने में स्वयं को तैयार नहीं कर पाते हैं ।
भारत ने स्वतंत्रता के अपने साठ साल के जीवन में पांच प्रमुख युध्द झेले है जिनमें हमारे रणबांकुरों ने दुश्मनों के दांत खट्टे किये है, परन्तु युध्दोपरांत वार्ता की मेज पर दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव व अल्पसंख्यक वोट बैंक की राजनीतिक दुष्प्रवृति व मानसिकता के कारण भारत का जीता हुआ युध्द भी सदैव पराजित होता रहा है। लगभग वैसी ही स्थिति बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ को लेकर हमारे राजनीतिक दलों की हो रही है। विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने तो भारत में रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों की कुल संख्या ही घटा कर 15 से 20 लाख बतायी है जिसे विपक्ष ने लोकसभा में सफेद झूठ बताया है। दिल्ली में ही विभिन्न क्षेत्रों में लगभग पांच लाख से अधिक बांग्लादेशी घुसपैठिए निवास करते हैं। मुम्बई, कोलकाता तथा पश्चिमी बंगाल के विभिन्न हिस्सों में राजनेताओं की कृपा दृष्टि से तीस लाख से अधिक बांग्लादेशी बसे हुए हैं। असम के कई जिलों में इन घुसपैठियों के कारण आबादी में (भारतीय व विदेशी घुसपैठियों के बीच) संतुलन का खतरा पैदा हो गया है। राष्ट्रवादी शक्तियां इन अवैध घुसपैठियों से देश में बढ़ते हुए खतरे को लेकर चिन्तित रहती है। परन्तु पूर्वोत्तर राज्यों के राजनेता एकदम से आंख मूंदे हुए हैं । समूचे भारत में लगभग 2.5 करोड बांग्लादेशी निवास करते हैं जिनके कारण भारत में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक (खाद्यान्न सहित) तानाबाना तहस-नहस हो रहा है। देश की एकता व अखंडता निरन्तर खतरे में पडती जा रही है सो अलग।
यह कई बार साबित हो चुका है कि मुस्लिम आतंकवादी पकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई बांग्लादेश के लोगों व जमीन का उपयोग भारत विरोधी गतिविधियों के लिए कर रहे हैं । पाकिस्तान से प्रशिक्षित आंतकवादी बांग्लादेश के रास्ते भारत में प्रवेश कर जाते हैं । बांग्लादेश से भारत में आ रहे बांग्ला घुसपैठिए महज रोजी रोटी के लिए भारत की सीमाओं का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं। भारत में पकडे गये आतंकवादियों से खुलासा हुआ है कि उन्होंने बांग्लादेश की कई बार यात्रा की है। हमारे राजनेताओं के दब्बूपन और सत्ता के लिए वोट बैंक की राजनीति ने राष्ट्र को एक गम्भीर खतरे की ओर बढा दिया है।
केन्द्र सरकार की ढिलाई के कारण प्रतिदिन 6,000 बांग्लादेशी घुसपैठिए अवैध रूप से भारत की सर-जमीन पर दाखिल हो जाते हैं। भारतीय सुरक्षा बलों के कुछ भ्रष्ट सिपाहियों व अधिकारियों को मात्र हजार पांच सौ रुपये देकर बांग्लादेशियों को भारत की सीमा में चुपचाप दाखिल करवा दिया जाता है। भारत में घुसे इन अवैध घुसपैठियों को फिर भारतीय राजनेताओं का राजनीतिक संरक्षण प्राप्त हो जाता है तथा भारत में रहने के लिए आवश्यक सभी प्रपत्र फर्जी रूप से तैयार करवा दिये जाते हैं। अवैध घुसपैठियों के कारण भारत के मूल नागरिकों के काम धन्धे पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा हैं ।
भारत में बांग्लादेश से हो रही अवैध घुसपैठ रोकने के लिए सरकार को दृढ़ इच्छाशक्ति से प्रारम्भ में दो काम करने चाहिए-अवैध रूप से भारत में रहने वालों को वापस खदेडा जाए तथा बांग्लादेश की पूरी सीमा को कंटीले लोहे के तारों से सील किया जाए वरना तो भारत का एक बडा हिस्सा भारत से पृथक हो जायेगा।
सन् 1800 में अफगानिस्तान व ईरान भारत के ही हिस्से थे किन्तु विदेशी आक्रमणकारियों से उत्पन्न हुए आतंक के कारण ही यह हिस्सा भारत से अलग हो गया। कश्मीर में फैलता आतंकवाद व 1960 से शुरू हुआ माओ आतंक भारत की आंतरिक सुरक्षा को भेदने का निरन्तर प्रयास कर रहा है। 21 वीं शताब्दी में विश्व में दो बडे आतंकवादी हमले हुए है। अमेरिका के पैंटागन और वर्ल्ड सेंटर पर हुआ हमला जिसने अमेरिका जैसी महाशक्ति को हिला कर रख दिया और दूसरा हमला विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र भारत की संसद पर किया गया जिससे पाक प्रायोजिक आतंकवाद बेनकाब हुआ । 1971 में हमारे वीर सैनिकों ने अपना खून बहा कर जिस बांग्लादेश का निर्माण किया वही आज भारत के लिए सबसे बड़ी समस्या बन चुका है।
2.5 करोड से अधिक बांग्लादेशी भारत की संस्कृति, आंतरिक सुरक्षा व रोजगार में सेंध मार रहे हैं वहीं प्रतिदिन 1,50,000 कुंतल खाद्यान्न चट कर जाते है। परन्तु अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण में तल्लीन हमारे राजनेता इस महत्वपूर्ण समस्या को गम्भीरता से नहीं ले रहे है तथा घुसपैठियों से उत्पन्न हुआ रोग अब नासूर बन चुका है जिसका एक बड़ा ऑपरेशन शीघ्र अतिशीघ्र करना आवश्यक हो गया है। जिसमें बांग्लादेश की सीमा पर 100 प्रतिशत तार बंदी शामिल है।(हिन्दुस्थान समाचार)
1 comment:
देश का दुर्भाग्य है कि घुसपैठ का खतरा मंडरा रहा है और देश के भाग्यविधाता आँख मूंदे इसे बढ़ावा दे रहे हैं। समय रहते इसका इलाज न हुआ तो एक दिन यह दानव पूरे देश को निगल जाएगा।
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