हितचिन्‍तक- लोकतंत्र एवं राष्‍ट्रवाद की रक्षा में। आपका हार्दिक अभिनन्‍दन है। राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता - आए जिस-जिस में हिम्मत हो

Wednesday 26 September, 2007

सेतुसमद्रम् परियोजना-दिवालियेपन की निशानी

लेखक-विनोद बंसल

श्रीराम सेतु को तोड़ने से भगवान श्री राम की एक दुर्लभ निशानी समाप्त होगी बल्कि भारत को काफी नुकसान भी होगा। जैसा कि श्रीराम और श्रीराम सेतु के अस्तित्व को लेकर कुछ ओछी मानसिकता वाले वोटों के भूखे राजनेता बयान बाजी कर रहे हैं, विश्व भर के हिन्दुओं की भावना आहत होना स्वाभाविक ही है। यदि श्रीराम को भगवान एंव श्रीराम सेतु को उनके द्वारा निर्मित न मानने वालों की ही मानें तो भी इस परियोजना में भारत सरकार को कितना नुकसान होगा इसका अन्दाज इस परियोजना को प्रारम्भ करने से न पूर्व में सोचा गया न किसी ने इस दिशा में कोई कदम उठाने का प्रयत्न किया।

बारह मीटर गहरे, 48 किमी. लम्बे व तीन किमी. चौडे श्रीराम सेतु को तोडकर सन् 2008 तक नहर का काम पूरा कराने वालों ने यह नहीं सोचा कि इससे सुनामी के खतरे को हम मोल ले रहे हैं, थोरियम के विश्व के सबसे बडे भण्डार को नष्ट किया जा रहा है तथा क्षेत्र में विद्यमान 3300 समुद्री वनस्पतियों व लगभग 450 प्रकार के समुद्री जीव जन्तुओं के जीवन के साथ-साथ जो लाखों मछुआरे इस क्षेत्र में अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं उनका क्या होगा।

अब यह देखते हैं कि इस परियोजना से जुडे महारथी इसके बारे में क्या कहते हैं। रामेश्वरम् से लगभग 666 किमी दूर चैन्नई स्थित एल एण्ड टी रामबोल नामक संस्था (जो इस परियोजना की इंजिनियंरिग सलाहकार है तथा जिसने इसके लिए वर्ष 2004 में एक रिर्पोट तैयार की थी) के टीम प्रमुख श्री टी. श्रीनिवासन को इस परियोजना की खामियों के बारे में बताते हुए पूछा गया कि क्या वाकई परियोजना से जहाजों के आवागमन में लगने वाले समय की बचत हो पायेगी, तो श्री श्रीनिवासन के चेहरे पर विस्मयकारी चुप्पी थी। इन्फ्रास्ट्रक्चर अर्थशास्त्री श्री जेकब जौन के अनुसार जो समुद्री जहाज कन्याकुमारी एवं तूतीकोरिन से चलेंगें उनके बारे में जो समय की बचत का अनुमान मै. एल एण्ड टी रामबोल रिर्पोट में लगाये गये है वे बहुत बढ़चढ़ कर बनाये गये आंकडे हैं, जो वास्तविकता से परे हैं। उनके अनुसार ''यूरोप व अफ्रीका से आने वाले जहाज कभी इन बन्दरगाहों पर नहीं जाते तो उतना समय कहां बच पायेगा'' यह बात बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि परियोजना के कुल खर्च का 60 प्रतिशत से अधिक भाग विदेशी समुद्री जहाजों से मिलने का अनुमान लगाया गया है। सेतुसमुद्रम् कोर्पोरेशन लि. के अधीक्षक अभियन्ता श्री मैनिक्कम से जब यह पूछा गया कि क्या किसी देशी या विदेशी जहाजरानी कम्पनी से पूछा गया है कि इस परियोजना के पूरा होने पर आप अपने जहाज इस 'छोटे' रास्ते से ले जाओगे? तो उन्होनें अपना पल्ला झाडते हुए कहा कि ''मै ड्रैजिंग कार्पोरेशन आंफ इण्डिया इस कार्य को देखते हैं''।

समुद्री मामलों के अर्थशास्त्री एवं रिसर्च एण्ड इंफोरमेशन सिस्टम फौर डवलपिंग कन्ट्रीज के एशोसिएट फैलो श्री प्रवीर डे के अनुसार परियोजना में बचने वाले समय को गलत तरीके से आंका गया है। क्योंकि जब बडे समुद्री जहाज इस नहर में से होकर गुजरेंगें तो उनकी गति बहुत धीमी हो जायेगी तथा वहां पर विशेष तौर से इसके लिए प्रशिक्षित पाइलटों की आवश्यकता पडेगी। इस कारण कोई भी जहाज इस रास्ते से जाना पसन्द नहीं करेगा।

सेवा निवृत्त नौ सेना कैप्टेन एच बाला कृष्णन के अनुसार 'परियोजना के दस्तावेजों के अनुसार 32,000 डी डब्ल्यू टी (डेड वेट टोनेज) भार क्षमता के जहाज ही इस नहर से निकल सकेंगे जबकि वर्तमान वैश्विक परिदृश्य को देखें तो 60,000 से अधिक क्षमता के जहाज भी बहुतायत में हैं जो कि इस क्षेत्र से नहीं गुजर सकेंगे'। अर्थात् कोई भी बडा जहाज इस नहर से नहीं जा सकेगा। श्री वी.एम.वैन्द्रे जो कि पुणे के पास सैन्ट्रल वाटर एण्ड पावर रिसर्च स्टेशन सीडब्ल्यूपीआरएस के निदेशक हैं, कहते हैं कि ऐसे प्रोजेक्ट को प्रारम्भ करने से पूर्व हाईड्रोलिक माडल्स विभिन्न प्रकार के टैस्ट करने हेतु तैयार किये जाते हैं जो कि इस परियोजना के लिए नहीं किये गये।

आखिर इस परियोजना में लगने वाले 3000 करोड से अधिक रूपयों तथा विश्व में करोडों राम भक्तों की भावनाओं से खिलवाड करने के पीछे क्या मानसिकता है? शिंपिंग इंण्डस्ट्री को तो इससे कुछ मिलने वाला है नहीं क्यों कि न समय की बचत और न ही तेल की बचत होगी। भला, कोई क्यों गली कूंचों में भटकना चाहेगा जब उसके पास हाइवे उपलब्ध है। जिस 'शौर्टकट' की बात सरकार कर रही है, वह महज एक दिखावा है। श्री प्रवीर डे कहते हैं ''यह सिर्फ राजनीति है, जो भारत को रामसेतु तोड़ने के लिए वाध्य कर रही है''। इससे कुछ लोगों का व्यक्तिगत लाभ तो हो सकता है किन्तु उससे होने वाली हानि सिर्फ एक देश को ही नही, पूरे विश्व को है। हो सकता है कि इस परियोजना के पीछे विदेशी शक्तियों का हाथ हो जो कि परमाणु ऊर्जा के प्रमुख श्रोत यूरेनियम के जनक थोरियम के विपुल भण्डार को सदा के लिए भारत से छीन कर परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में हमें अपंगु बनाना चाहते हैं। यदि हम थोरियम आधारित परमाणु रिएक्टर बनाने का कार्य आरम्भ करते हैं तो आगामी लगभग तीन सदियों तक हम न खाडी के देशों पर निर्भर रहेंगे न अमेरिका के साथ परमाणु करार के लिए वाध्य होगें। साथ ही करोडों बेरोजगारों को अपने ही देश में काम मिल सकेगा तथा लोगों की आस्था के साथ भी खिलवाड़ रूक सकेगा ।

(नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)

1 comment:

अनिल रघुराज said...

अयोध्या के एक और प्रमुख मंदिर सरयू कुंज के महंत जुगलकिशोर शरण शास्त्री तो बड़े ही मुंहफट हैं। उनका कहना है कि राम की सेना ने लंका तक पहुंचने के बाद समुद्र देवता के अनुरोध पर रामसेतु को ही नष्ट कर दिया था और रावण-वध के बाद राम और उनकी सेना पुष्पक विमान से अयोध्या वापस लौटी थी। इसलिए एडम्स ब्रिज कभी रामसेतु हो ही नहीं सकता।
पूरा विवरण यहां देख सकते हैं...
http://diaryofanindian.blogspot.com/2007/09/blog-post_26.html