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Tuesday 18 September, 2007

सिर्फ हिन्दुओं से ही आस्था के प्रमाण क्यों मांगे जाते हैं?

-सुषमा स्वराज, सांसद (राज्य सभा), भाजपा

श्रीराम सेतु के संदर्भ मं संसद में आवाज गुंजाने वाली प्रखर भाजपा नेता श्रीमती सुषमा स्वराज को गत 13 सितम्बर को 2004 के लिए सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान मिला। परन्तु वे अपनी श्रेष्ठता के सम्मान के बाद भी रामसेतु प्रकरण के कारण क्रुध्द थीं। उन्होंने पाञ्चजन्य से एक बातचीत में कहा कि सिर्फ हिन्दुओं से ही उनकी आस्था के प्रमाण क्यों मांगे जाते हैं? क्या हमारी आस्था प्रमाणपत्रों के आधार पर टिकी है? हिन्दुओं को भी केवल इतना ही कहना चाहिए कि रामसेतु हमारी आस्था है, हमारा विश्वास है और इसके लिए किसी को हमसे कोई प्रमाण मांगने का हक नहीं है। यह वह देश है जहां के हर अंचल में रहने वाली महिला वह गीत गाती है कि देखो, पति-पत्नी के बीच कितनी गाढ़ी प्रीति है कि हमारे राम जी समुद्र पर सेतु बांधकर अपनी पत्नी को वापस लाए। मैं तो कहती हूं कि रामसेतु के लिए भारत की महिलाएं ही इकट्ठा होकर बड़ी से बड़ी कुर्बानी देते हुए उसे बचा लेंगी- पुरुषों को एक तरफ बैठे रहने दिया जाए तो भी।

श्रीमती सुषमा स्वराज ने कहा कि मू-ए-मुकद्दस (हजरत बल) के खो जाने पर जब कहा गया कि वह हर हाल में खोजा जाना है क्योंकि वह हमारे पैगम्बर साहब की छाती का बाल है, तो किसी ने उनसे यह नहीं कहा कि इसका प्रमाण दो। हिन्दुओं ने उनकी भावना का साथ दिया। इसी प्रकार जब ईसाई वर्जिन मेरी के सुपुत्र जीसस को सर्वोच्च आदर देते हैं तो कोई यह नहीं कहता कि यह तो संभव ही नहीं है। क्योंकि आस्था और विश्वास पर कोई प्रश्न खड़ा नहीं कर सकता। संसद में भी हमने यह विषय उठाते हुए कहा था कि अखबारों में समाचार छपा कि केवल 15 पेड़ों को काटने से बचाने के लिए मेट्रो का रास्ता बदला गया है तो क्या करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक रामसेतु उन 15 पेड़ों से भी गया-गुजरा हो गया?

श्रीमती स्वराज ने कहा कि उन्होंने संसद में आवाज उठाई है कि इस मामले में प्रधानमंत्री हस्तक्षेप करें और अगर सम्बंधित मंत्री रामसेतु विध्वंस नहीं रोकते तो उन्हें मंत्रिमण्डल से बर्खास्त करें।

1 comment:

विष्णु बैरागी said...

इसलिए कि अपनी आस्‍थाओं के साथ खुद हिन्‍दू जितना और जैसा खिलवाड करते हैं, वैसा और उतना अन्‍य किसी धर्म के अनुयायी नहीं । सेतु समुद्रम परियोजना वाले मामले में भाजपा का दोहरा व्‍यवहार खुद इसका उत्‍क़ष्‍ट उदाहरण हो है । यह परियोजना, श्रीअटलबिहारी वाजपेयी के प्रधानमन्त्रित्‍व काल में शुरु हुई थी और तत्‍कालीन वित्‍त मन्‍त्री यशवन्‍त सिन्‍हा ने इस योजना के, सुलभता अध्‍ययन के लिए लगभग 5 करोड रुपयों का प्रावधान किया था । यह याद दिलाने की जरूरत नहीं कि श्रीसिन्‍हा भी भाजपाई ही हैं । 'नीरी' की जिस रिपोर्ट के आधार पर अटलजी ने यह परियोजना स्‍वीकार की थी उस रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि एडम्‍स ब्रिज (जिसे रामसेतु कहा जा रहा है) का कोई पुरातात्विक महत्‍व नहीं है ।'

जब नीरी के सामने स्‍थानीय लोग अलाइनमेण्‍ट बदले जाने का विरोध कर रहे थे तब भाजपा चुप थी जबकि विश्‍व हिन्‍दू परिषद् विरोध कर रही थी ।


यह पूरा विवरण श्री संजय तिवारी के ब्‍लाग 'विस्‍फोट' पर, 'रामसेतु और भाजपा' शीर्षक वाली पोस्‍ट में पढा जा सकता है ।

वस्‍तुत: भाजपा जिस 'साहसिक शैली' (कृपया ध्‍यान दें - 'साहसी शैली' नहीं)में हिन्‍दुत्‍व का व्‍यापार कर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिशें करती है, उसी कारण से और वैसे ही तमाम कारणों से हिन्‍दुओं से उनकी आस्‍था के प्रमाण मांगे जाते हैं ।
भाजपा यदि हिन्‍दुत्‍व का पिण्‍ड छोड दे तो ऐसे सवाल उठने ही बन्‍द हो जाएंगे क्‍यों कि तब हिन्‍दू धर्म के नाम पर दोहरा आचरण स्‍वत: ही परिदृश्‍य से अनुपस्थित हो जाएगा ।