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Friday 21 September, 2007

परमाणु समझौता और राम सेतु विध्वंस-साजिश के जुड़ते सूत्र

-डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

पिछले दिनों भारत और अमेरिका में जो परमाणु समझौता हुआ है उसका देश के भीतर हर स्तर पर विरोध हो रहा है। यदि संसद में सदस्यों की संख्या के आधार पर किसी प्रस्ताव को पारित या खारिज मानना हो तो यह समझौता आसानी से खारिज माना जाएगा क्योंकि साम्यवादी टोला, एनडीए और तीसरा मोर्चा तीनों ही इस समझौते का विरोध कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इस साधारण सी गणना के महत्व को सोनिया गांधी न जानती हों क्योंकि यह जोड़ और तकसीम का गणित पांचवीं, छठी कक्षा में ही पढ़ा दिया जाता है इसके लिए एमएससी करने की जरूरत नहीं है। इस बाल गणित को जानते हुए भी सोनिया गांधी का समझौते को लागू करने का हठ इस समझौते के सूत्र कहीं और तलाश करने के लिए विवश कर रहा है।

अब हम रामसेतु की चर्चा करेंगे। ऊपर से देखने पर पूछा जा सकता है कि परमाणु समझौते और रामसेतु को तोड़ने की साजिश का आपस में क्या संबंध हो सकता है? लेकिन गहराई से भीतर झांकने पर दोनों का संबंध अत्यंत स्पष्ट ही नहीं होता बल्कि भारत के भविष्य के लिए चिंता भी पैदा करता है। रामसेतु को तोड़ने के लिए सोनिया गांधी की सरकारी अत्यंत हड़बड़ी में है। वह इसके किसी भी पक्ष पर विचार करने के लिए तैयार नहीं है। जिस प्रकार पिछले कुछ दशकों से श्रीलंका में प्रभाकरण के नेतृत्व में एक समानांतर सरकारी चलाई जा रही है और उस सरकार को चर्च और ईसाई देशों से करोड़ों रुपये का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष अनुदान मिल रहा है। राजीव गांधी ने भारत विरोधी इस गढ़ को ध्वस्त करने का प्रयास किया था। परंतु उन सभी शक्तियों ने मिलकर राजीव गांधी का कत्ल कर दिया। राजीव गांधी हत्याकांड में जिन लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज है उनमें प्रभाकरण का नाम भी आता है। डीएमके की एलटीटीई के साथ क्या सांठगांठ हैं। इसको लेकर तमिलनाडु में ही विद्वान क्यास लगाते रहते हैं। एलटीटीई को सहायता पहुँचाने के लिए जिन समुद्री जहाजों का इस्तेमाल किया जाता है, उनके श्रीलंका की जल सेना द्वारा पकड़े जाने की संभावना बनी रहती है क्योंकि सागर में श्रीलंका के ऊपर से घूमकर ही समुद्री जहाज जा सकते हैं। वैसे एलटीटी ने अब तक थोड़ी बहुत अपनी जलसेना भी विकसित कर ली है। यदि रामसेतु टूट जाता है तो एलटीटीई के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा दूर हो जाएगी। अमेरिका का भी रामसेतु के टूटने में हित है क्योंकि वह पहले ही धमकियाँ दे रहा हैकि श्रीलंका और भारत के बीच का समुद्र अंतर्राष्ट्रीय जल है वह इसे श्रीलंका और भारत के बीच का जल क्षेत्र नहीं मानता। रामसेतु के टूट जाने पर अमेरिका का यह दावा और भी पुख्ता होगा और विदेशी जहाज जिनके मालिक एलटीटी की मदद कर रहे हैं भारत के जल क्षेत्र में स्वछंदता से घूमना शुरू कर देंगे। भारत का समुद्री सीमांत खतरे में पड़ जाएगा। रामसेतु के टूटने से केरलीय तट थोरियम भी नष्ट हो जाएगा। लेकिन प्रश्न यह है कि यह सब जानते बुझते हुए भी सोनिया गांधी सरकार रामसेतु को तोड़ने के लिए वाजिद क्यों है? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए यह जानना भी जरूरी है कि राजीव गांधी हत्याकांड में प्रभाकरण का नाम होते हुए भी सोनिया गांधी की सरकार उसके खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं कर रही? इसके साथ ही जिस डीएमके को राजीव गांधी हत्याकांड में सोनिया गांधी स्वयं जिम्मेवार मानती थीं उस डीएम के साथ सोनिया गांधी ने किसके कहने पर समझौता किया है? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि राजीव गांधी हत्याकांड में जिन चार लोगों को फांसी की सजा हुई उनकी सजा क्षमा करवाने के लिए सोनिया गांधी ने क्यों अपील दायर की? इतना ही नहीं एक अभियुक्त को सोनिया गांधी ने राजीव गांधी फाउंडेशन की ओर से छात्रवृत्ति भी प्रदान की। ये सारे सूत्र इस बात की ओर संकेत करते हैं कि एलटीटीई, सोनिया गांधी की सरकार और रामसेतु को तोड़ने का षडयंत्र इन सभी के सूत्र किसी एक स्थान से ही संचालित हो रहे हैं । राजीव गांधी इसमें बाधा बन सकते थे इसलिए उन्हें पहले ही रास्ते से हटा दिया गया। यह अमेरिका का भारत को गोद में लेने का षडयंत्र है।

इस षडयंत्र का दूसरा सूत्र अभी हाल ही में हुए भारत अमेरिका परमाणु समझौते से जा जुड़ता है। रामसेतु को तोड़ना अमेरिका द्वारा भारत के समुद्री सीमांत को घेरना है और परमाणु समझौता उसे सामरिक दृष्टि से पंगु बनाना है। इन दोनों कामों में सोनिया गांधी की सरकार अमेरिका की सबसे बड़ी सहायक सिध्द हो रही है। अमेरिका पिछले अनेक सालों से भारत पर सीटीबीटी और एनपीटी पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डालता रहा है। लेकिन नरसिम्हा सरकार और उसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने अमेरिका के इस दबाव के आगे झुकने से इंकार कर दिया। इतना ही नहीं वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में तो परमाणु बम धमाके से अमेरिका का पूरा तंत्र हिल गया था। शायद अमेरिका ने उसी वक्त यह निर्णय ले लिया था कि अब दिल्ली में सोनिया गांधी को स्थापित करने का अवसर आ गया है और उसकी इस साजिश में साम्यवादियों ने स्वेच्छा से या दबाव से शामिल होने की सहमति दी। सोनिया गांधी की सरकार स्थापित करने के उपरांत यह समझौता न होता तो तब हैरानी अवश्य होती। इस समझौते के बाद भारत परमाणु क्षेत्र में अमेरिका का एक प्रकार से उपनिवेश बन जाएगा। इसलिए परमाणु समझौता और रामसेतु का विध्वंस ये दोनों अमेरिका के लंबे हितों की पूर्ति के लिए दो आवश्यक प्रकल्प है जिन्हें जॉर्जबुश और सोनिया गांधी हर हालत में पूरे करने पर अड़ी हुई हैं।

कुछ तथाकथित विशेषज्ञों को यह भ्रम है कि अमेरिका चीन के मुकाबले भारत को मजबूत करना चाहता है। परंतु अमेरिका का इतिहास गवाह है कि अमेरिका ने लोकतांत्रिक देशों के मुकाबले सदा तानाशाह देशों की सहायता की है। लंबी रणनीति में अमेरिका और चीन स्वभाविक मित्र हो सकते हैं। इसलिए अमेरिका भारत को सोनिया गांधी के माध्यम से अपना उपनिवेश बनाने का प्रयास कर रहा है। रामसेतु विध्वंस और परमाणु संधि इसकी शुरूआत भर है। जाहिर है कि आने वाले लोकसभा चुनावों में अमेरिका की दिलचस्पी बढ़ेगी क्योंकि अमेरिका नहीं चाहेगा कि सोनिया गांधी की सरकार दिल्ली से हट जाए।
(नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)

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