लेखक-अमृतांशु कुमार मिश्र
भारत का इतिहास अति प्राचीन है। हमारा इतिहास उस समय से है जब धरती पर लोग पढ़ना लिखना नहीं जानते थे। गाथाओं के माध्यम से हमने अपने इतिहास को जीवित रखा। बाद में रामायण और महाभारत के माध्यम से इतिहास को लिखित साक्ष्य प्रदान करने की कोशिश की गई। लेकिन वर्तमान परिदृष्य में सरकार देश के उस प्राचीन इतिहास को मानने को ही तैयार नहीं है। अजीब संयोग है कि जिस देश में राम और कृष्ण हुए उसी देश में उनके अस्तित्व को नकारा जा रहा है। लेकिन महाभारत में भगवान श्री कृष्ण ने कहा था कि जब भी धर्म की हानि होगी मैं प्रकट होऊंगा। अगर कहा जाए तो भगवान ने साक्ष्यों के रूप में प्रकट भी होना शुरू कर दिया है।
श्री राम सेतु के बारे में सरकार के हलफनामे में सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि राम थे ही नहीं। राम सेतु को नकारने का सबसे अच्छा माध्यम तो यही हो सकता था कि जिसने इसका निर्माण किया उसी के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लगा दिया जाए । न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। सरकार ने यही किया। कौन सा राम? कौन सा इतिहास? राम तो पैदा ही नहीं हुए। कोई प्रमाण ही नहीं है। यह वैसा ही तर्क है जैसा कि धरती गोल है पर हम नहीं मानते। दिखाओ तो जानें। अब कोई किसी को एक पूरी पृथ्वी तो दिखा ही नहीं सकता। जो नहीं मानना चाहें उनके लिए तो पृथ्वी चपटी ही होगी।
पिछले कुछ दशकों से जहां एक ओर राम जन्मभूमि बाबरी ढाँचा के बाद श्री राम के अस्तित्व को स्वीकारने वाले भक्तों की संख्या में वृध्दि हुई है वहीं श्री राम के अस्तित्व को नकारने वाले भी अधिक सक्रिय हुए हैं। किसी न किसी प्रकार से उसके अस्तित्व को नकारने की भरपूर कोशिश की जा रही है। लेकिन भगवान ने स्पष्ट कर दिया है कि धर्म की हानि होने पर मैं अवश्य प्रकट होऊंगा। इसलिए जब राम के अस्तित्व को नकारा जाने लगा तो नासा के माध्यम से राम सेतु रूपी साक्ष्य प्रकट हुआ। अब भगवान श्री राम को नहीं मानने वालों के लिए भारी समस्या उत्पन्न हो गई है। अगर कहें कि श्री राम सेतु मानव निर्मित है तो हमारे धर्म ग्रन्थ स्पष्ट करते हैं कि राम सेतु का निर्माण भगवान श्री राम ने किया था। अगर भगवान श्री राम ने इसका निर्माण किया था तो उन्होंने अवश्य ही जन्म लिया था और अगर जन्म लिया था तो कोई जन्मस्थली भी होगी। इन सभी पचड़ों में पड़ने से अच्छा है कि भगवान श्री राम के अस्तित्व को ही क्यों न नकार दिया जाय और इसी रणनीति के तहत राम विरोधी तत्व अपना काम कर रहे हैं। एक बार राम के अस्तित्व को नकार दिया तो फिर आधी विजय तो हो ही गई। राम ही नहीं तो राम जन्म भूमि कैसी?
इसी प्रकार भगवान कृष्ण को भी नकारा जाता रहा है। हालांकि महाभारत में वर्णित स्थानों के नाम अभी भी विद्यमान हैं इसलिए कहा जाता है कि कुछ तो सच है लेकिन अधिक कल्पना ही है। अब हमारे धर्म शास्त्रों में वर्णित राक्षसों के भी प्रमाण प्राप्त होने लगे हैं। भारत के उत्तरी क्षेत्र में खुदाई के समय नेशनल ज्योग्राफिक (भारतीय प्रभाग) को 80 फीट का विशाल नर कंकाल मिला है। यह कोरी कल्पना नहीं है। कंकाल की खोपड़ी 10 फीट से भी बड़ी है। उत्तर के रेगिस्तानी इलाके में एम्प्टी क्षेत्र के नाम से जाना जाने वाला यह क्षेत्र सेना के नियन्त्रण में है।
खास बात यह है कि इतने बड़े मनुष्य के होने का कहीं कोई प्रमाण अभी तक प्राप्त नहीं हो सका था। इसलिए हमारे धर्म ग्रंथों में वर्णित राक्षसों को हम मात्र कोरी कल्पना ही मानते थे। लेकिन अब इन राक्षसों के भी प्रमाण मिलने लगे हैं जिससे देवताओं के कई बार संघर्ष होने की चर्चा हमारे धर्म ग्रंथों में है। उल्लेखनीय है कि 80 फीट के नरकंकाल के पास से ब्रह्म लिपि में एक शिलालेख भी प्राप्त हुआ है। इसमें लिखा है कि ब्रह्मा ने मनुष्यों में शान्ति स्थापित करने के लिए विशेष आकार के मनुष्यों की रचना की थी। विशेष आकार के मनुष्यों की रचना एक ही बार हुई थी। ये लोग काफी शक्तिशाली होते थे और पेड़ तक को अपनी भुजाओं से उखाड़ सकते थे। लेकिन इन लोगों ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया और आपस में लड़ने के बाद देवताओं को ही चुनौती देने लगे। अन्त में भगवान शिव ने सभी को मार डाला और उसके बाद ऐसे लोगों की रचना फिर नहीं की गई।
महाभारत में भी भीम बकासुर जैसे इसी प्रकार के एक राक्षस से लड़ा था और उसे पराजित भी किया था। पाण्डु पुत्र भीम ने एक राक्षसी हिडिम्बा से विवाह किया था और उससे एक पुत्र घटोत्कच प्राप्त हुआ था। महाभारत के युध्द में उसने भी हिस्सा लिया था और कर्ण के हाथों मृत्यु को प्राप्त हुआ था। मरते समय उसने अपना आकार बढ़ाया था और शत्रु सेना यानी कौरव सेना पर गिरा था। उसका आकार इतना बड़ा था कि उसके गिरने से भी कई सैनिक मारे गए थे। इन तथ्यों को कभी भी स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि कहीं भी विशालकाय मानव के अस्तित्व का साक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ था। लेकिन अब इस 80 फीट के नरकंकाल ने सिध्द कर दिया है कि भारत में राक्षसों का अस्तित्व था। हालांकि इस क्षेत्र में अभी किसी को जाने नहीं दिया जा रहा और आर्कलाजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया का कहना है कि सरकार से अनुमति प्राप्त होने के बाद ही इसपर कुछ कहा जाएगा। अब देखना है कि सरकार इस मुद्दे पर कौन सी रण्ानीति अपनाती है और इस 80 फीट के नर कंकाल को क्या कह कर तथ्यों को छिपाने की कोशिश करती है।
पहले श्री राम सेतु तथा अब मिले 80 फीट के नरकंकाल के बाद अब हमें अपने धार्मिक ग्रंथों को कोरी कल्पना नहीं मानकर उसकी गम्भीरता से पड़ताल करनी चाहिए। तथ्य को स्वीकार करना ही होगा। लेकिन तथ्य को वही स्वीकार करेगा जिसे धार्मिक ग्रंथों पर आस्था हो। जो राम के अस्तित्व को ही नहीं मानते वे रामसेतु को क्या मानेंगे। कहीं ऐसा न हो कि राम सेतु के बाद राम जन्म भूमि और उसके बाद दशहरा और दिवाली जैसे त्योहारों पर ही प्रतिबन्ध लग जाए। जब राम ही नहीं हुए तो कैसी विजया दशमी। श्री राम सेतु ही नहीं तो न राम रावण युध्द हुआ और न ही किसी को विजयश्री प्राप्त हुई। श्री राम लंका गए ही नहीं तो फिर उनके आने पर दिवाली कैसी? श्री राम जन्मे ही नहीं तो राम नवमी क्यों? फिर तो होली और जन्माष्टमी जैसे पर्व भी भारत के इतिहास से खरोच दिए जाएंगे। त्योहारों के इस देश की स्थिति की फिर तो कल्पना ही नहीं की जा सकती।
(नवोत्थान लेख सेवा हिन्दुस्थान समाचार)
2 comments:
achha lekh hai.
kuch aur adhik praman dete to aur achha hota.
keep it up..
इस मुद्दे पर आप निरन्तर तथ्यपरक लेख प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है सरकार को इससे कुछ सदबुद्धि मिलेगी।
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