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Friday 14 September, 2007

स्तालिन और माओ का राष्ट्रीय हित- नवभारत टाइम्स

विशेष संवाददाता
नई दिल्ली: राष्ट्रीय हित की आड़ में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते का विरोध करने वाले भारतीय कॉमरेड बिल्कुल भूल गए कि माओत्सेतुंग ने परमाणु टेक्नॉलजी के लिए क्या किया था। प्रतिष्ठित चीनी लेखिका हात सुइन ने अपनी किताब द मॉर्निंग डल्यूज में लिखा है कि स्तालिन के सोवियत संघ से माओ के संबंध परमाणु टेक्नॉलजी को लेकर खराब हुए। माओ ने परमाणु हथियार बनाने के लिए सोवियत संघ से टेक्नॉलजी मांगी। स्तालिन इसके लिए तैयार नहीं हुए। यहां से खटास आनी शुरू हुई और दुनिया का पहला कम्युनिस्ट देश चीन की नजर में संशोधनवादी बनने लगा।

परमाणु टेक्नॉलजी हासिल करने के पीछे माओ के असली इरादे बाद में सामने आए। माओ का चीन आक्रामक राष्ट्रवाद पर चल रहा था, जिसे सम्मान प्रदान करने के लिए क्रांति का मुलम्मा चढ़ाया गया। अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर ऐटम बम गिराए तो माओ आए दिन थर्मोन्यूक्लियर युद्ध की बात किया करते थे। माओ यह भी कहते थे कि परमाणु युद्ध के बाद भी समाजवादी निर्माण के लिए बड़ी संख्या में चीनी बच जाएंगे। राजनैतिक सत्ता बंदूक की नली से निकलती है, इस सिद्धांत की तर्कसंगत परिणति थर्मोन्यूक्लियर युद्ध की कल्पना में ही हो सकती थी।

भारतीय कॉमरेड जिस परमाणु समझौते का विरोध कर जाने-अनजाने चीन का काम कर रहे हैं, उस चीन के राष्ट्रवाद की एक और मिसाल। जापानी, फ्रांसीसी और अमेरिकी उपनिवेशवाद-साम्राज्यवाद के खिलाफ लगातार संघर्ष करने वाले वियतनाम पर 1979 में चीन ने हमला किया था। सोवियत संघ से दोस्ती के कारण वियतनाम चीन की आंख की किरकिरी पहले से ही बना हुआ था। बारूद में चिनगारी का काम किया वियतनाम में चीनी उद्यमियों के खिलाफ कार्रवाई ने। आक्रामक राष्ट्रवाद का परिचय देते हुए उस समय चीन ने ऐलान किया था कि 1962 में जिस तरह भारत को सबक सिखाया गया, उसी तरह वियतनाम को सिखाया जाएगा। भारत के जले पर नमक छिड़कते हुए बाद में चीन ने यह भी कहा कि भारत की रेग्युलर आर्मी की तुलना में वियतनाम के बॉर्डर गार्ड्स ने लड़ाई बेहतर लड़ी। राष्ट्रीय मुक्ति संग्राम के प्रतीक वियतनाम पर चीन के हमले की निंदा सीपीएम ने आज तक नहीं की है।

भारतीय कॉमरेडों के लिए एक-दो बातें स्तालिन के राष्ट्रवाद के बारे में। जर्मन हमले के बाद स्तालिन ने सोवियत जनता का आह्वान समाजवाद नहीं, पितृभूमि की रक्षा के नाम पर किया था। अगस्त 1945 में सोवियत संघ के सामने जापान के आत्मसमर्पण के बाद स्तालिन ने जो कहा वह तो किसी कम्युनिस्ट की भाषा हो ही नहीं सकती। स्तालिन ने कहा था कि हमने राष्ट्रीय अपमान का बदला लेने के लिए 40 साल इंतजार किया। उनका इशारा 1904 के रूस-जापान युद्ध की ओर था। उस युद्ध में जार का रूस जापान के हाथों बुरी तरह हारा था। तो जार की हार का बदला कम्युनिस्ट स्तालिन ने लिया।

2 comments:

संजीव कुमार सिन्‍हा said...

यह समाचार 22 अगस्त, 2007 को नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हुआ हैं।

ePandit said...

माओ के बारे में काफी जानकारी पूर्ण रहा यह लेख।